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कांग्रेस को इस बार न सिर्फ शर्मनाक हार का सामना करना पड़ा है, बल्कि देश की सबसे पुरानी पार्टी पर विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष का पद गंवाने का भी खतरा मंडरा रहा है.
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वैसे यह गुजरात के इतिहास में कांग्रेस का अब तक का सबसे निराशाजनक प्रदर्शन भी है, जब वह 20 का आंकड़ा भी नहीं छू पाई थी.
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182 विधानसभा सीटों वाले देश के पश्चिमी राज्य में कांग्रेस ही जीतती नजर आ रही है 16 सीटें।
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इसके बाद साल 2019 में भी कांग्रेस महज 52 सीटों पर जीत हासिल कर सकी थी, जबकि नेता प्रतिपक्ष का पद पाने के लिए लोकसभा में कम से कम 55 सीटों की जरूरत होती है.
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नेता प्रतिपक्ष कई संवैधानिक पदों पर नियुक्ति के लिए पैनल में शामिल होते हैं, जो अब नहीं होगा।
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नरेंद्र मोदी सरकार ने अपने पहले कार्यकाल में मल्लिकार्जुन खड़गे को लोकपाल नियुक्ति पैनल की बैठकों में विशेष आमंत्रित के तौर पर आमंत्रित किया था,
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लेकिन नेता प्रतिपक्ष का पद नहीं मिलने के विरोध में खड़गे ने इसका बहिष्कार कर दिया था.
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इन तमाम खूबियों के अलावा नेता प्रतिपक्ष के पद के पीछे एक बड़ा राजनीतिक संदेश भी है, लेकिन कांग्रेस ने भी विपक्ष के साथ ऐसा ही व्यवहार किया है,
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ध्यान रहे, केंद्र में पिछले दो लोकसभा चुनावों में भी खराब प्रदर्शन के चलते कांग्रेस को नेता प्रतिपक्ष की कुर्सी नहीं मिल पाई है.
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2014 में 543 सीटों वाली लोकसभा में कांग्रेस को केवल 44 सीटों पर जीत मिली थी और जब मल्लिकार्जुन खड़गे के लिए विपक्ष के नेता का पद मांगा गया था,