जैसा कि आप सभी लोग जानते हैं कि कृष्ण जन्माष्टमी krishna janmashtami आने वाली है लेकिन इस बार कृष्ण जन्माष्टमी दो तिथियों में हो रही है यह क्यों होता है हिंदू त्यौहार कभी-कभी दो तिथियों में मनाए जाते हैं ऐसी क्या परिस्थितियां हो जाती है जो हमारे हिंदू त्योहार होते हैं। आपको मालूम है कृष्ण जन्माष्टमी वर्ष 2022 में हो रही है क्या कारण है इसका आइए हम इसको समझते हैं।
हिंदुस्तान के हर कोने में कृष्ण जन्माष्टमी की धूम बनी रहती है जगह जगह कई प्रकार के आयोजन भी किया जाते हैं अधिकतर “मटकी फोड़” का आयोजन सबसे ज्यादा किया जाता है ।जिस दिन कान्हा जी का जन्मदिन मनाया जाता है और इस मौके पर पूरे भारतवर्ष में बड़े ही धूमधाम से सजावट की जाती है साथ ही इनके जन्मदिन के उपलक्ष में ढेरों शुभकामनाएं भी मिलती है दी ही जाती है। भगवान श्री कृष्ण को नंदलाला कान्हा लड्डू गोपाल गोविंदा बाल गोपाल ऐसे लगभग 108 नामों से पुकारे जाने वाले भगवान श्री कृष्ण shree Krishna युगो युगो से हर भारतीय कैसा था विदेशों में भी उनके दिल में बसे हुए हैं ।
और कृष्ण जन्माष्टमी को पूरी श्रद्धा के साथ हिंदुओं द्वारा एक पर्व के रूप में मनाया जाता है और इसी प्रकार से सदियों तक भगवान श्री कृष्ण जी का जन्मदिन इसी प्रकार से मनाते रहेंगे।
वर्ष 2022 मे कृष्ण जन्माष्टमी (krishna janmashtami) कब है ?
हम सब यह जानते हैं कि भगवान श्री कृष्ण का जन्म अष्टमी तिथि को रोहिणी नक्षत्र में हुआ था लेकिन बहुत बार ऐसी प्राकृतिक स्थिति बन जाती है की अष्टमी और रोहिणी नक्षत्र दोनों ही एक दिन नहीं हो पाते जैसे कि इस बार की कृष्ण जन्माष्टमी में कृष्ण जन्म की तिथि और रोहिणी नक्षत्र दोनों एक साथ नहीं मिल पा रहे हैं और यदि हम बात करें इस बार 18 अगस्त को रात्रि 9:21 के बाद पंचांग के अनुसार अष्टमी की तिथि आरंभ हो जाएगी जोकि 19 अगस्त की रात्रि 10:59 तक रहेगी लेकिन रोहिणी नक्षत्र का आरंभ 19 अगस्त को रात्रि 1:54 से शुरू होगायही कारण होता है की इस बार की कृष्ण जन्माष्टमी कहीं पर 18 अगस्त और कहीं पर 19 अगस्त की है।
This year in 2022 Ashtami will start at 09:20 pm on 18th August and will end on 19th August at 10:59 am, in all temples, Lord Krishna is offered “56 bhog prasad”
कृष्ण जन्माष्टमी (krishna janmashtami) क्यों और कब मनाई जाती है?
शास्त्रों के अनुसार भाद्रपद महीने की कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि पर रोहिणी नक्षत्र में भगवान श्री कृष्ण जी का जन्म हुआ था।और जिस प्रकार हम सभी अपने प्रिय जनों का जन्मदिन उनकी जन्म तारीख के हिसाब से मनाते हैं ठीक उसी प्रकार से भगवान श्री कृष्ण का भी जन्मदिन प्रत्येक वर्ष भाद्रपद मास की कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि पर मनाया जाता है। जिस दिन भगवान श्री कृष्ण ( उनके बाल रूप) की पूजा की जाती है और हम आपको यह भी बता दें विष्णु पुराण के अनुसार भगवान श्री कृष्ण भगवान विष्णु के आठवें अवतार थे।
The festival of Krishna Janmashtami is celebrated to commemorate the birth of Lord Krishna. Basically, Janmashtami is celebrated on the eighth day of “Bhadrapada” month.
सभी व्रतों में सर्वोत्तम है कृष्ण जन्माष्टमी krishna janmashtami का व्रत
कृष्ण Krishna जन्माष्टमी पर जो भी उपवास रखते हैं ऐसा मानना है कि यदि कृष्ण भक्त भगवान shree Krishna के बाल रूप को पालने में झूला देते हैं तब उनकी सभी मनोकामनाएं पूरी हो जाती है ।भगवान श्री कृष्ण का जन्म भाद्रपद महा के कृष्ण पक्ष की अष्टमी को रोहिणी नक्षत्र में हुआ था जिस कारण से इस दिन को कृष्ण जन्माष्टमी कहते हैं। इस दिन भगवान श्रीकृष्ण की पूजा करने से संतान प्राप्ति, दीर्घायु तथा सुख समृद्धि की प्राप्ति भी होती है। हम आपको यह भी बता दें कि जिन व्यक्तियों का चंद्रमा कमजोर होता है यदि वह लोग कृष्ण जन्माष्टमी पर उपवास रखकर उनकी पूजा करने मात्र से लाभ प्राप्त कर सकते हैं।
Lord Shri Krishna ji was born in the jail of Mathura and he was the 8th child of mother Devaki and father Vasudev.
कृष्ण shree Krishna जन्माष्टमी के त्योहार को किस प्रकार मनाया जाता है?
shree Krishna जन्माष्टमी पर आपने बहुत ही चहल-पहल पूरे भारत में देखी होगी इसके साथ-साथ विदेशों में रहने वाले सभी भारतीय वहां पर भी बड़े धूमधाम से जन्माष्टमी का उत्सव मनाते हैं। सभी भक्तों द्वारा कृष्ण जन्माष्टमी के इस पावन अवसर पर उपवास रखा जाता है और कान्हा जी के मंदिर को भी सजाया जाता है साथ ही बाल रूप लड्डू गोपाल की मूर्ति को झूले में बिठाकर बड़े ही प्यार से जलाया जाता है इसके साथ साथ मंदिरों में भजन-कीर्तन इत्यादि किए जाते हैं और बहुत से स्थानों पर इस अवसर पर दही हांडी तोड़ने का कार्यक्रम किया जाता है।
यदि हम बात करें भगवान श्री कृष्ण shree Krishna नगरी मथुरा की वहां का नजारा ही कुछ और होता है इस नजारे को देखने के लिए पूरे भारतवर्ष से हजारों की संख्या में श्रद्धालु आते हैं तथा मथुरा में स्थित मंदिरों में श्रद्धा भक्ति भाव से भगवान श्री कृष्ण की पूजा अर्चना भी करते हैं इस पावन बेला पर मथुरा नगरी में भगवान श्री कृष्ण के जन्म उत्सव की चमचम आहट नजर आती है और द्वारकाधीश, बिहारीजी एवं अन्य सभी मन्दिरों में विराजमान भगवान श्री कृष्ण राधा रानी श्री राम सीता माता सभी को फूल मालाओं से सजाया जाता है।
Rukmini was the wife of Lord Shri Krishna, she had a love marriage with Shri Krishna, she was the incarnation of Goddess Lakshmi.
भगवान श्री कृष्ण के श्रीविग्रह पर मक्खन , दही, घी ,तेल ,हल्दी, गुलाबजल, मक्खन, कपूर आदि चढ़ा कर सभी ब्रजवासी उसका परस्पर लेपन के साथ साथ छिड़काव करते हैं तथा छप्पन भोग का महाभोग प्रभु को लगाते है। वैसे तो श्री कृष्ण नगरी मथुरा कहां एक अलग ही नाम है लेकिन कृष्ण जन्माष्टमी पर मथुरा नगरी बहुत ही सुंदर एवं भव्य दिखती है क्योंकि कृष्ण जन्माष्टमी के शुभ अवसर पर मथुरा नगरी में स्थित सभी मंदिरों पर अलग-अलग प्रकार की लाइटें भी लगाई जाती है जिससे उनकी सुंदरता और अधिक बढ़ जाती है।
बच्चों को बनाते है श्री कृष्ण
भगवान श्री कृष्ण के जन्मदिन पर बच्चों को श्री कृष्ण shree Krishna की ड्रेस पहना कर उनको बाल श्री कृष्ण बनाया जाता है। यहां तक की कृष्ण जन्माष्टमी से पहले स्कूलों में भी श्री कृष्ण और राधा रानी बनने के लिए प्रतियोगिता भी की जाती है इसमें छोटे बच्चों को श्री कृष्ण और राधा रानी की ड्रेस पहना कर प्रतियोगिता कराई जाती है। जिस प्रकार से दिवाली पर लाइट, मोमबत्तियां, और पटाखे इत्यादि मार्केट में मिलने शुरू हो जाते हैं ठीक उसी प्रकार से ही भगवान श्री कृष्ण के जन्मदिन पर यानी जन्माष्टमी पर श्री कृष्ण और राधा रानी जी की ड्रेस भी मिलने लगती है और श्री कृष्ण जी को झूला झुलाने के लिए झूले भी बाजार में मिलने शुरू हो जाते हैं|
कृष्ण जन्माष्टमी की तैयारियां
जिस प्रकार से दीपावली के नजदीक आते ही पूरे भारतवर्ष में एक खुशी की लहर दौड़ जाती है और अपने घरों की साफ-सफाई करने लगते हैं ठीक उसी प्रकार से कृष्ण जन्माष्टमी आने पर पूरे हिंदुस्तान में एक खुशी की लहर दौड़ जाती हैऔर इस उत्सव को मनाने के लिए मंदिरों को खास तौर पर सजाया जाता है जन्माष्टमी पर पूरे दिन व्रत रखने का विधान है और सभी कृष्ण भक्तों जिस दिन 12:00 बजे तक व्रत रखते हैं इस दिन मंदिरों में झांकियां सजाई जाती है और माता राधा रानी श्री कृष्ण समेत इन की झांकियां भी निकाली जाती है। कृष्ण जन्माष्टमी पर लड्डू गोपाल जी को झूला झुलाया जाता है साथ ही इनके रासलीला का भी आयोजन किया जाता है।
Lord Krishna did not marry Radha due to the curse of Maharishi Bhrigu, because Lord Vishnu was cursed to be separated from his love every time.
मटकी फोड़ (Matki Fod) / दही हांडी प्रतियोगिता
पूरे भारतवर्ष में जन्माष्टमी Janmashtmi के शुभ अवसर पर देश में अनेकों जगहों पर दही हांडी / मटकी फोड़ (Matki Fod) प्रतियोगिता का आयोजन किया जाता है। इस प्रतियोगिता में सभी जगह आए हुए बाल-गोविंदा भाग भाग लेकर इस प्रतियोगिता का हिस्सा बनते हैं और ऊपर लटकी हुई दही हांडी को तोड़ते हैं। यह दही हांडी बहुत ऊंचाई पर डांगी जाती है जिसमें सभी को बाल- गोविंदा एकजुट होकर एक मीनार बनाते हैं और छाछ दही आदि से भरी हुई हांडी /मटकी (Matki Fod) को तोड़ने का प्रयास करते हैं। यह दही हांडी/ मटकी एक रस्सी के द्वारा काफी ऊंचाई पर बांधी जाती है।
Janmashtami is the most important day, on this day an idol of the child form of Lord Shri Krishna is also swing in a swing, on this day the devotees of Lord Krishna also keep fast.
कुछ स्थानों पर दही हांडी /मटकी फोड़ (Matki Fod) प्रतियोगिता को करने के लिए एक लंबे से खंबे का इस्तेमाल किया जाता है। जिसके चारों तरफ कोई भीचिकना या तेलिया पदार्थ लगाया जाता है। इस प्रकार की प्रतियोगिता में बाल-गोविंदा एक-एक करके अपने हुनर को प्रदर्शित करते हैं और मटकी फोड़ प्रतियोगिता का आनंद लेते हैं। दही हांडी / मटकी फोड़ (Matki Fod) प्रतियोगिता में विजेता टीम या बाल-गोविंदा के लिए उचित इनाम भी दिए जाते हैं। जो भी बाल गोविंदा या टीम विजय घोषित होती है उसको इस इनाम के द्वारा पुरस्कृत किया जाता है।
क्यों मनाते हैं दही हांडी / मटकी फोड़ (Matki Fod) प्रतियोगिता
भगवान श्री कृष्ण की जयंती जन्माष्टमी पर दही हांडी (Matki Fod) के प्रतियोगिता भगवान श्री कृष्ण की बाल लीलाओं से संबंधित है धार्मिक शास्त्रों के अनुसार भगवान श्री कृष्ण को माखन बहुत ही अधिक पसंद था जिसे वह चोरी छुपे खाने के लिए अपने ग्वाले दोस्तों के साथ टोली बनाकर पूरे गोकुल का माखन चुराते थे। श्री कृष्ण जी की इस हरकत से परेशान होकर गोकुल वासियों ने अपने माखन को नीचे ना रखकर मटके में भरकर उन्हें लटकाना शुरू कर दिया था। लेकिन भगवान श्री कृष्ण को जिसका भी कोई प्रभाव नहीं पड़ा और वह अपने वाले दोस्तों को साथ टोली बनाकर उनके कंधों पर चढ़कर मटकी तक पहुंचते थे और तुम भी माखन खाते थे और अपने दोस्तों को भी खिलाते थे।
कभी-कभी तो हमने अपने सीरियलों में देखा भी होगा कि बाल श्री कृष्ण जब माखन चोरी करने जाते थे और उनको वह मटके हाथ नहीं आती थी ऊंचे होने के कारण तब यह उन्हें डंडा मारकर तोड़ दिया करते थे। तब से ही यह प्रतियोगिता दही हांडी/ मटकी फोड़ आदि के रूप में मनाई जाती है। आज के समय में दही हांडी/ मटकी फोड़ प्रतियोगिता में भाग लेकर मानव पिरामिड बनाने वालों को गोविंदा कहां जाता है।
“Matki Fod” is also organized across the country on Krishna Janmashtami
भगवान श्री कृष्ण जी के रोचक तथ्य
भगवान श्री कृष्ण जी के जीवन की कुछ ऐसी अनजाने और रहस्य में बातें हैं जो अधिकतर लोगों को नहीं पता होती है आज हम कुछ ऐसे ही अनजाने और रस्सी में तथ्यों की जानकारी देने जा रहे हैं कृपया ध्यान से पढ़ें
- भगवान श्री कृष्ण जी के खड़ग का नाम नंदक था उनकी गधा का नाम कौमौदकी तथा तथा उन के शंख का नाम पांचजन्य था जो वह गुलाबी रंग का था।
- भगवान श्री कृष्ण के परमधाम गमन के समय उनका एक भी केस श्वेत अर्थात सफेद नहीं था और ना ही उनके शरीर पर कोई झुर्री थी।
- यह आपको मालूम हो सकता है कि भगवान श्री कृष्ण के धनुष का नाम सारंग एवं मुख्य आयुध चक्र का नाम सुदर्शन था जिसको हम सुदर्शन चक्र के नाम से ही जानते हैं।
- श्री कृष्ण shree Krishnaकी परदादी “मारिषा” और सौतेली मां रोहिणी (बलराम की माता ) नाग जनजाति की थी।
- श्री कृष्ण जी के जन्म के समय जो यशोदा पुत्री बदली गई थी उनका नाम एकांनशा था जो आज विध्वंसनी देवी के नाम से पूजी जाती है।
- भगवान श्री कृष्ण की औपचारिक शिक्षा उज्जैन के संदीपनी आश्रम में हुई थी जो कुछ ही महीनों में पूरी कर ली थी।
- भगवान श्री कृष्ण shree Krishnaके रथ का नाम जैत्र था और उनके सारथी का नाम दारुक / बाहुक और उनके घोड़ों का नाम शैवय , सुग्रीव , मेघपुष्प तथा बलाहक था ।
- भगवान श्रीकृष्ण shree Krishna की त्वचा का रंग मेघश्यामल और उनके शरीर से मादक गंध निकलती थी।
- भगवान श्री कृष्ण shree Krishna ने द्वारिका और पांडव पुत्रों द्वारा इंद्रप्रस्थ नाम के दो नगरों की स्थापना की थी।
- भगवान श्री कृष्ण shree Krishna ने मात्र 16 वर्ष की आयु में विश्व प्रसिद्ध चाणूर और मुष्टिक का वध किया था।