Dussehra क्यों मनाया जाता है- Dussehra 2022 का महत्व

भारत एक सांस्क्रतिक देश है। यहां की संस्क्रति का अपना ही एक गौरवशाली इतिहास रहा है। भारतवर्ष की इसी संस्कति के कारण विश्व में अपना एक स्थान है। भारत में विभिन्न तरह की विविधताएं देखने को मिलती हैं जिनमे से एक Dussehra का त्योहार है, भारत में देवी देवताओं में बहुत आस्था है यहॉ कई धर्मां और जातियों के लोग निवास करते है। भारत में त्यौहारों का बडा महत्व है। यहां के लोग अपने अपने धर्मो के अनुसार उत्सवों को हॅसी खुशी से मनाकर उनका आनन्द लेते है। हिन्दु धर्म के कई मुख्य त्यौहार है जैसे होली, दिवाली, दशहरा, गंगा स्नान आदि। दशहरा हिन्दु धर्म का एक विशेष त्यौहार है।

कब मनाते है Dussehra का त्यौहार ?

जो भी त्यौहार हिन्दु धर्म में मनाये जाते है उनका कोई संदेश जरूर होता है Dussehra का त्यौहार अश्विन मास की शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि को और दीपावली से लगभग दो सप्ताह पहले आता है। Dussehra के त्यौहार के नौ दिन पहले से ही नवरात्रों का पूजन प्रारम्भ हो जाता है। नवरात्रों के इन नौ दिनों में लगभग सभी स्त्री पुरूष व बच्चें माता दुर्गा के व्रत रखते है तथा हवन आदि भी करते है।

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इसलिए दशहरा के आने के पूर्व ही बाजारो मे चहल कदमी होने लगती है। लोगो में हर्ष और उल्लास का माहैल बना रहता है। दशहरा के त्यौहार पर भारत सरकार के द्वारा कई दिनों का राजपत्रित अवकाश घोषित किया जाता है।

Dussehra क्यों मनाया जाता है ?

भारत एक विविधताओं का देश है इसमें कई तरह की भाषाएं बोली जाती हैं और कई धर्मा के लोग आपसी सदभावना के साथ भारत के लोकतंत्र को मजबूत करते हुए अपने अपने धर्मा के प्रति सजगता से पालन करते हुए अपना अपना जीवन यापन कर रहे है। Dussehra को लेकर हमारे देश में कइ्र्र मान्यताएं प्रचलित है कहा जाता है कि त्रेतायुग में अयोघ्या के राजा दशरथ राज्य करते थे, उनके कुलगुरू महर्षि विश्वामित्र के आशिर्वाद के फलस्वरूप् राजा दशरथ की तीनो रानीयो कौशल्या , सुमित्रा, और कैकेयी के पुत्रों का जन्म हुआ।

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Dussehra  त्यौहार का रामायण मे महत्व – राजा दशरथ की तीनों रानियों में कौशल्या जो सबसे बडी थी उनके राम, और कैकेयी के भरत और सुमित्रा के लक्ष्मण और शत्रुध्न का जन्म हुआ। चारो पुत्रां ने गुरूकुल में शिक्षा प्राप्त की।एक बार युद्व के दौरान राजा दशरथ के साथ महारानी कैकेयी भी युद्वस्थल में गयी ओैर युद्व में भाग लिया तथा राजा की युद्व के समय सहायता की। जिस पर राजा दशरथ बडे खुश हुए और कैकेयी को वर मांगने को कहा तो कैकेयी ने कहा कि महाराज समय आने पर मॉग लूंगी। समय बीतता गया और युवराज बडे हे गयें।

रामायण की मान्यताओ के अनुसार 

राजा दशरथ के बड़े पुत्र राम को राजा बनाना चाहते थे परन्तु कैकेयी अति महत्वकांशी हो गयी और कैकेयी की दासी मंथरा ने कैकेयी को भ्रमित कर राजा से उनके द्वारा दिये वर को मॉगने को कहा जिस पर कैकेयी ने महाराज दशरथ से वर मांगते हुए एक वर में राम को 14 बर्षो का वनवास और दूसरे में अपने पुत्र के लिए राजा बनने का वर मांग लिया।

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Dussehra के त्योहार पर असत्य पर सत्य का प्रतीक (bankbazaar)

 

Dussehra  पर्व की मान्यताओं के अनुसार उस समय राजा अपने वचन के लिए बडे ही सजग रहते थे। और वचन पूरा करने के लिए कुछ भी नुकसान सह लेते थे इससे पहले चारों राजकुमारों का विवाह मिथिला के राजा जनक की पुत्रियो सीता माता  का विवाह राम से, भरत का माण्डवी , लक्ष्मण का उर्मिला तथा शत्रुध्न का शुतकीर्ति के साथ हुआ था । पिता महाराज की आज्ञा पाकर राम 14 बर्षों के वनवास को चले गये चूकि भरत अब राजा हो गयें थे, तो उन्होने राज्य करना स्वीकार नही किया और राम की चरण पादुका को राजा बनाकर राज्य करने लगे। वनवास के दैरान चित्रकूट धाम जहॉ राम ने वन में निवास किया वहां से सीता माता  का हरण लंका के राजा रावण द्वारा हरण का लिया गया, काफी तलाश करने के बाद वनवास के दौरान ही राम की मुलाकात सुग्रीव से हुई,

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सुग्रीव का बडा भाई बालि किष्किन्धा का राजा था। उसने सुग्रीव की पत्नि की जबरन अपने राज्य में रख रखा था। सुग्रीव के मंत्री हनुमान जी ने सुग्रीव और राम की मुलाकात कराई। राम ने मित्रता निभाते हुए बाली का वद्ध करके सुग्रीव को राज्य और उनकी पत्नि को दिलाया। सुग्रीव ने भी मित्रता निभाते हुए सीता माता  माता जी की खोज करायी। हनुमान जी ने सीता माता जी का पता लगाया था। माता सीता लंका के राजा रावण की कैद में थी।

वन में रावण की बहिन सुर्पनखां राम और लक्ष्मण पर मोहित हो गयी थी। भगवान राम के मना करने पर वह क्रोधित होकर सीता माता  जी को खाने के लिए दौडी इस पर लक्ष्मण जी ने सुर्पनखा की नाक काट दी थी। इसी का बदला लेने के लिए रावण ने माता सीता माता  का हरण कर लिया था। भगवान राम ने समुद्र को पार करने के लिए सेतु का निर्माण किया जिसे आज हम लोग राम सेतु के नाम से भी जानते है, और लंका पर चढाई कर दी,  और भयंकर युद्ध हुआ जिसमे श्री राम के द्वारा रावण अंत कर दिया गया|

इसीलिए आज के दिन बुराई पर अच्छाई की जीत पर Dussehra का त्योहार मनाया जाता है इसके साथ साथ पूरे भारत में रावण की प्रतिमा को भी जलाया जाता है और इस प्रतीम के जलने के साथ ही बुराई का अंत भी होता है | इस दिन मां दुर्गा ने महिषासुर नामक दैत्य का भी संहार किया था। रावण बुराई का प्रतीक था रावण को मारकर भगवान राम ने धर्म की स्थापना की थी। दशहरा को नवरात्री के नाम से भी जाना जाता हैं। पश्चिम बंगाल में Dussehra को दुर्गा पूजा के रूप में बडी धूम-धाम से मनाते है। इसलिए इसे दुर्गापूजा के नाम से भी मनाते है।

कैसे मनाया जाता है Dussehra का त्यौहार ?

Dussehra  असत्य पर सत्य, अधर्म पर धर्म की विजय का त्यौहार है। इसलिए लोग Dussehra  को बडी धूमधाम से मनाते है। दशहरे के नौ दिन पहले से जगह जगह रामलीला का आयोजन किया जाता है। रामलीला मे भगवान राम और रावण के अभिनय का प्रसतुतिकरण किया जाता है। Dussehra  के दिन रावण , मेघनाद और कुम्भकर्ण के पुतलो को जलाकर भगवान राम की जीत की खुशी मनायी जाती है। धार्मिक ग्रंथो के आधार पर इन नौ दिनों में शारिरिक, मानसिक और आघ्यात्मिक तीनों शक्तियों से जीवन में प्रगति करने में सहायता मिलती है।

Dussehra  त्यौहार का हमारे जीवन में महत्व

त्यौहारो का हमारे जीवन में बहुत बडा महत्व योगदान है और Dussehra  का तो हमारे जीवन में बहुत ही महत्व है क्योंकि त्यौहारों से हमें शिक्षा मिलती है दशहरे का त्योहार हमें सिखाता है कि बुराई कितनी ही ताकतवर क्यों ना हो, परन्तुं उसे अच्छाई और सच्चाई के सामने उसको हारना ही पडता है। रावण ने माता सीता का हरण किया, पर उसके पुत्र मेघनाद और भाई कुम्भकर्ण ने उसके इस कुकर्म मे रावण का साथ दिया अन्त में तीनों भगवान राम के हाथों वीरगति को प्राप्त हो गये। इस प्रकार अधर्म पर धर्म की जीत हुईं,।

दशहरा मेला का उत्सव  –

Dussehra  का त्यौहार मेलो के लिए भी जाना जाता है इस त्यौहार पर जगह -जगह मेंलो का आयोजन होता है Dussehra  उत्सव मेला आकर्षण का अति मुख्य केन्द्र होता है। खरीददारी के लिए बाजारों को सजाया जाता है। बच्चो के लिए मिठाई खिलौनो व मौज मस्ती की पूरी तैयारी रहती है लोग रावण के बड़े बड़े पुतलों को दूर दूर से देखने के लिए मेलो में आते है। रावण दहन देखने लोग जमा होते है तथा सडकों पर बहुत हलचल रहने लगती है।

5 दशहरा के मेले जो दुनियां मे प्रसिद्ध है

  • मदिकेरी – मदिकेरी कर्नाटक का एक शहर है इस शहर में दशहरा का विशेष उत्सव की शुरुआत होती है। जिसका नाम मरियम्मा है
  • बस्तर- यहाँ पर Dussehra का त्योहार पिछले 600 वर्षों से मानते आ रहे है ,छत्तीसगढ़ में उपस्थित बस्तर जिले के दण्डकरण्य स्थान में भगवान श्री राम ने अपने चौदह वर्ष के बनबास के दौरान इस स्थान पर रहे थे. इसी जगह के जगदलपुर स्थान में मां दंतेश्वरी जी का मंदिर भी है, जहां पर प्रत्येक वर्ष दशहरा का उत्सव वड़े ही धूम से मनाते है और यहाँ पर वन क्षेत्र मे रहने वाले जारों आदिवासी इस उत्सव को देखने और मानने आते हैं|
  • मैसूर- दशहरा को कर्नाटक का प्रादेशिक त्योहार माना जाता है. मैसूर का दशहरा पूरी दुनिया में प्रसिद्ध है
  • कुल्लू- हिमाचल प्रदेश में स्थित कुल्लू के ढालपुर मैदान में मनाए जाने वाले दशहरे को भी दुनिया का प्रसिद्ध दशहरा माना जाता है।
  • कोटा- यह राजस्थान प्रदेश का एक प्रसिद्ध शहर है जहां पर Dussehra त्योहार को भी बड़े ही उत्साह पूर्वक मनाते है ।

दशहरा पर 10 लाइन

1-दशहरा का पर्व मुख्य पर्व में से एक है Dussehra  का त्यौहार हमारे देश में बडी धूमधाम से मनाया जाता है।
2-दशहरा के त्यौहार को लोग विजयदशमी के नाम से भी जानते है।
3-विजयदशमी का पर्व अश्विन मास की दशमी तीथि को मनाया जाता है।
4- दशहरा नवरात्रों के नौ व्रतो के बाद दशवें दिन आता है इसलिए इसे दुर्गापूजा के नाम से भी जाना जाता है।
5- दशहरा का त्यौहार दीपावली के लगभग 15 दिन पूर्व आता है।
6- दशहरा के दिन भगवान राम ने रावण का वद्व किया था।
7-विजयदशमी के ही दिन मॉ कालिका ने महिषासुर का संहार किया था।
8- दशहरा के दिन रावण मेंघनाद व कुम्भकर्ण के पुतलों को जलाया जाता है।
9- Dussehra  पर रामलीला और मेलों का आयोजन किया जाता है।
10-दशहरा पर लोग नीलकंठ पक्षी को देखना शुभ मानते है।

Dussehra पर अपने अन्दर के रावण को मारनें की जरूरत है

जैसा कि रावण को सभी लोग बुराई का प्रतीक मानते है और हर साल रावण के पुतलों को जलाकर लोग प्रसन्न होते है परन्तु क्या हमने अपने समाज में आस पास फैली बुराइयों पर कभी ध्यान दिया है। त्रेता युग में भगवान राम का प्रतिदवंधि केवल एक रावण था। लेकिन आज हर घर और व्यक्ति के भीतर रावण छिपा बैठा है इतने रावणों से जीत पाना सरल काम नही है। Dussehra  को लेकर लोगों में वहुत असमाजिक कुरीतियॉ फैली हुई है जिनका सीधा प्रभाव हमारी नई पीडी के लोगो पर प्रत्यक्ष अथवा अप्रत्यक्ष रूप से पड रहा है। ऐसा लगता है लोग रावण को अपने मन सें निकालने की वजह रावण को मन में बसाये घूम रहे है।

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Dussehra पर अपने अन्दर के रावण को मारनें की जरूरत है (India )

 

आज रावण की मानसिकता के लोग समाज में खुले घूम रहें हैं। Dussehra  उत्सव पर भी वह लोग वलात्कार ,चोरी डकैती लूट आदि असामाजिक गतिविघियों को अंजाम देने में नहीं चूकते है। बात बात पर जूठ बोलना और धूम्रपान करना तो जैसे आज फैसन हो गया है। लोगो को जिन्दगी जीना दुर्भर हो चला है किस पर विश्वास करे किस पर नही मनुष्य ये फैसला तक करने में असमर्थ है। लोगो के मन मे ईर्ष्या द्वेष की भावना ने पैर पसार लिए है। मनुष्य के सोचने सम़झने का स्तर इतना गिर चुका है। कि भाई भाई आज एक दूसरे के खून का प्यासा हो गया है। एक अच्छी विचारधारा ही हमारे अन्दर के रावण को मार सकती है।

Dussehra  पर कुछ समाजिक अध्ययन

रावण की प्रक्रति के कुछ असामाजिक लोग जिनका उददेष्य समाज में केवल और केवल गंदगी फैलाना ही जिनका मुख्य काम है ऐसे लोग शराब का सेवन करके Dussehra  पर्व मे भीड़ का लाभ उठाकर छेड़ छाड़ जैसी अमानवीय हरकतों को अंजाम देने लगते हैं ऐसे लोगो से समाज को दूर रहना चाहिए। यदि ऐसे लोगो से हम सतर्कता वरते तो ही हम किसी मेले त्यौहार या अनुष्ठान का आनन्द ले सकते है।

दशहरा पर्व से सीख-

किसी भी धर्म के किसी भी ग्रंथ को यदि हम पढे तो हम सबको एक ही सिक्षा मिलती है कि बराई का अंत बुरा ही होता है। रावण ने बहूत परिश्रम करके अपने लिय दैविक शक्तियों को प्राप्त किया पर एक पाप कर्म की वजह से उसकी सारी शक्तियों का कुल सहित सर्वनाश हो गया ।रामायाण से भी हम सबको यही सीख मिलती है।

 

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