दोस्तों अमेरिका, जर्मनी और सभी यूरोपीयन जैसे विकसित देश भले ही अनेक मामलों में हमसे आगे और बेशुमार हो लेकिन एक मामला ऐसा भी है जिसमें यह सभी विकसित देश भारत से बहुत पीछे हैं, वह है Digital Transection ,
इसमें यूपीआई Interface की सबसे ज्यादा भूमिका रही है UPI (Unified Payments Interface) के जरिए बहुत आसान हो गया है, अब सब कुछ खरीदने के लिए CASH की जरूरत नहीं बल्कि मोबाइल और इंटरनेट की जरूरत है।
UPI 2.0 में तो इंटरनेट की भी आवश्यकता नहीं है बिना इंटरनेट के ही हम अपनी खरीदारी कर सकते हैं मतलब समय के साथ Currency और Transection का तरीका भी बदल गया है अब यह Currency न होकर Digital Currency और Transection न होकर Digital Transection हो रही है , भारत में प्रत्येक दिन 22 करोड Online Transection होते हैं इंडियन UPI ने अपने कई खूबियों के चलते हैं इंटरनेशनल मार्केट में भी कमाल कर दिया है आप भी यूपीआई पेमेंट को भारत ही नहीं विदेशों में भी बहुत तेजी से अपनाया जा रहा है और बताया जा रहा है कि जल्द ही यूपीआई की फैसिलिटी इंटरनेशनल लेवल पर 30 से अधिक देशों में भी उपलब्ध होने वाली है।
भारत की UPI Technology का कर रहा America है विरोध
आपको जानकर हैरानी होगी कि अमेरिका में भी UPI का विरोध किया जा रहा है, इसमें बहुत से ऐसे प्लेयर हैं जो इंडिया की UPI Technology का विरोध कर रहे हैं। इसमें सबसे आगे VISA and MASTERCARD जैसी कंपनियां है, और यह कंपनियां अमेरिका के साथ-साथ दूसरे देशों से भी भारत के इस UPI payment system को दूर रखना चाहते हैं।
ऐसे में हमारे मन में सवाल उठता है कि यह क्या वजह है कि अमेरिका भारत की UPI Technology का विरोध कर रहा है, और वह इस Technology क्यों चिड़ रहा है, तो आज के हम इस पोस्ट में इसके बारे में संपूर्ण जानकारी आपको देने वाले हैं तो आप हमारी इस पोस्ट को अंत तक पढे ।
दोस्तों भारत Digital Payment System में जिस तेजी से आगे बढ़ता चला जा रहा है, उसके मुकाबले विकसित देश बहुत पीछे दिख रहे हैं। कोरोना महामारी में भारत की मजबूत Digital Payment System ने बिना किसी खामी के भारतीय लाभार्थियों तक सही तरीके से और तेजी से मदद पहुंचाने में अहम भूमिका निभाई है।
global real time online transaction आँकड़ा क्या कहता है
वर्ष 2021 के आंकड़े बताते हैं कि global real time online transaction में सिर्फ अकेले भारत की 40% की हिस्सेदारी है, वर्ष 2021 में भारत ने 48.60 अरब global real time online transaction किए हैं।
यह transaction चीन से 2.6 गुना अधिक है, यदि बात करे हम America , Canada, Britten, Frans और Germany के कुल ट्रांजैक्शन को मिला दे, तब भी भारतीय ट्रांजैक्शन 6.5 गुना रहे हैं। The Economist की एक रिपोर्ट में बताया गया है कि जर्मनी में लोगों को बैंक खातों में सीधे पैसा ट्रांसफर करने का कोई ठोस infrastructure नहीं है। जर्मन बैंक प्रत्येक दिन में मात्र 1 लाख लोगों तक के खातों में ही सीधे पैसा ट्रांसफर कर सकता है।
वहां की हालत इतनी खराब है की बैंक खातों को पेन से लिंक करने में भी डेढ़ साल लग सकता है इसके विपरीत यदि भारत को देखा जाए तो वित्त वर्ष 2021-2022 में daily 90 लाख लोगों के खातों तक सरकार ने सीधे पैसे पहुंचाए हैं। यहाँ तक की America भी DBT ट्रांसफर में भारत से काफी पीछे हैं, भारत की UPI यह तरक्की है। अमेरिका को रास नहीं आ रही है, और यही नहीं अमेरिका समेत कई कंपनी भारत के UPI system का विरोध कर रही हैं।
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लेकिन समझने वाली बात यह है की भारत की इस UPI Technology का विरोध वहाँ की जनता या Google जैसी कंपनी नहीं कर रही है। बल्कि वहां के VISA, MASTERCARD and American Express जैसी कंपनियाँ कर रही हैं। जब से भारत में UPI की शुरुआत की गई थी और लोगों के बीच पॉपुलर बनता जा रहा था, तब से ही इन अमेरिकन कंपनियों ने भारत की UPI Technology का विरोध करना शुरू कर दिया था, क्योंकि यूपीआई की वजह से इनका बिजनेस घाटे में जा रहा था।
आपको बता दें कि यह तीनों ही कंपनियां डेबिट और क्रेडिट कार्ड बेचती हैं। इन कंपनी की तरफ से ऑनलाइन पैसा ट्रांसफर करने की सुविधा दी जाती है। इस सर्विस के बदले यह एक से 3% का चार्ज लगाती हैं, जिससे मर्चेंट डिस्काउंट रेट यानी के MDR कहा जाता है और अपनी सर्विस का कुछ हिस्सा यह बैंक को देती हैं, और बचे हुए पैसों से इन कंपनियों की इनकम होती है|
लेकिन भारत के UPI में ऐसा कुछ भी नहीं है इसमें पैसों के ट्रांजैक्शन में किसी भी प्रकार का कोई शुल्क नहीं लगाया जाता है यानी आप जिसे भी पैसा देना भेजने या किसी को भी आप किसी भी वस्तु की खरीदारी पर या किसी भी प्रकार की पेमेंट करना चाहोगे तब उस पर बैंक द्वारा या UPI द्वारा किसी प्रकार का शुल्क नहीं लगाए जाते हैं।
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UPI की यह सुविधा उसे पॉपुलर बना रहे हैं लेकिन यहां पर आपके मन में यह सवाल भी खड़ा हो रहा होगा कि जब UPI द्वारा किए गए transection में कोई चार्ज नहीं लगता है, तब क्या बैंकों को कोई नुकसान नहीं रहा होगा क्योंकि पहले उन्हें MDR का कुछ हिस्सा तो मिलता ही था पर अब वह मिलना भी बंद हो गया है। तो दोस्तों हम आपको यहां बता दें कि भारत सरकार ने बैंकों को 1300 करोड़ रुपये दिए हैं जिससे UPI की सुविधा फ्री मिल सके और यहां पर एक सवाल फिर भी आ जाता है कि बैंकों को इतनी बड़ी रकम देने से क्या भारत सरकार को कोई घाटा नहीं हुआ होगा।
दरअसल नोटों के छापने और उनकी प्रिंटिंग में 2.3 लाख करोड़ रुपए खर्च किए जाते हैं लेकिन जब से UPI टेक्नॉलजी आई है तब से बैंक नोटों की आवश्यकता कम हो गई है, अब लोग Online transaction पर ज्यादा भरोसा करते हैं। इससे उनका पैसा सुरक्षित हुए रहता है और नोटों को लेकर जन्मी बहुत सी समस्याओं से छुटकारा मिल जाता है। यही वजह है कि भारत के साथ साथ कई देशों में UPI की सुविधा कई देशों को भी मिलने वाली है और बहुत से देश भारत की इस UPI Technology को अपना भी रहे है ।
UPI से VISA, MASTERCARD and American Express कंपनियों की भी है हालत खराब
अमेरिका एक ऐसा देश है जहां इसका विरोध किया जा रहा है दोस्तों अमेरिका, दुनिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है इसके हर फैसले का असर पूरी दुनिया में पड़ता है, लेकिन आपको जानकर यहां पर हैरानी होगी होगी कि जो देश पूरी दुनिया पर अपना राज चलाता है वहां उसकी अपनी भी नहीं चल रही है। बल्कि यहां की सरकार पर अमेरिकी कंपनियों का दबदबा है जैसे VISA, MASTERCARD and American Express कंपनी।
VISA, MASTERCARD and American Express कंपनियों का business पूरी दुनिया में फैला हुआ है, शुरुआत में जब ये कंपनियां आई थी तब इनके सामने कोई और दूसरी कंपनी नहीं थी । लेकिन जब से भारत की UPI आई है तब से इन सभी की नींद खराब हो गई है। अमेरिका की इन कार्ड कंपनी के कार्ड से पैसा transfer सिर्फ कार्ड मशीन (POS, ATM) पर ही कर सकते है, लेकिन कार्ड मशीन को केवल registered दुकान में ही लगाया जा सकता है परंतु इसके विपरीत UPI में एसा नहीं है ।
UPI के माध्यम से आप सब्जी से लेकर एक टॉफी भी आप ले सकते है बिना किसी registration के और UPI services भी आसान है इसे कोई भी ले सकता है इसमें कार्ड मशीन लेने जैसी registration प्रक्रिया नहीं है और नहीं किसी बड़ी दुकान की आवश्यकता है इसे एक सड़क किनारे लगाने वाले ठेले से लेकर बड़े बड़े होटल में UPI को भी इस्तेमाल में भी ले सकते है वह भी फ्री में। इसी कारण से इन सभी कार्ड कंपनी समेत अमेरिका को भी भारत की इस UPI technology से नफरत हो रही है ।
भारत का UPI, America की Fed Now से है बहुत आगे
हम आपको यह भी बता दें की अमेरिका में भी भारत की UPI आने से पहले UPI की तरह ही Fed Now नाम से एक RTGS प्लेटफॉर्म बनाने का सुझाव दिया गए था। जिसे UPI जैसा ही बताया जाता है लेकिन ऐसा नहीं हम आपको बता दें कि FedNow के द्वारा online transaction को करने के लिए ठीक उसी प्रकार से बैंक की website पर जाकर लॉगिन करना होता है और यह सर्विस कुछ चुनिंदा दुकानदारों के पास ही है जिसमे पैसे transfer करने के लिए पैसे भेजने वाले की सभी जानकारी भरनी पड़ती है, और फ्री सर्विस नहीं देते एसे में उसे UPI की तरह कहना गलत होगा|
इसके साथ ही UPI का एक फायदा यह भी होगा कि की आपको UPI Payment app जैसे Paytm, Google pay, phone pay प्लेटफॉर्म उपलब्ध है, वहीं अमेरिकन प्लेटफॉर्म FedNow में ऐसा नहीं है। UPI के कारण सभी छोटे बड़े बैंक सभी बराबर हों गए है अब बैंक customer को यह डर भी नहीं सताता है की उसका खाता एक छोटे बैंक में है। अब कस्टमर को यह डर खत्म हो गया है कि उनका खाता छोटा या बड़ी बैंक में है तथा उसकी Online Transaction करते समय उसकी Website slow या हैंग हो जाएगी, या किसी भी बैंक की सर्विस में कमी हो जाएगी।
UPI से America के Swift network पड़ा असर
दोस्तों भारत की सभी बैंकों में ज्यादातर एक समान के ही rules है लेकिन अमेरिका में ऐसा नहीं है, यहां के citi Bank और Bank of America पूरे बैंकिंग सेक्टर पर अपना रोव चलाता है, ऐसे में यदि भारत का UPIअमेरिका में चला जाता है तो उनकी मनमानी खत्म हो जाएगी। यही कारण है कि वह भी नहीं चलाते कि UPI के कदम यहां पर पड़े।
इसके साथ ही यूपीआई का विरोध एक कारण Swift नेटवर्क भी है जिसके जरिए इंटरनेशनल व्यापार किया जाता है इसमें सारी ट्रांजैक्शन अमेरिका से होकर गुजरती है, इसी कारण अमेरिका का पूरा कंट्रोल Swift transaction पर रहता है वह कभी भी किसी देश पर बैन लगा सकता है, जैसा कि उसने रूस के साथ किया है, उसे यूक्रेन पर हमला बोलने के बाद उसने रूस की Swift पर बैन कर दिया है जिसका नुकसान भारत को ही हुआ, क्योंकि भारत और उसका तेल का पेमेंट नहीं कर पाया और उसको तेल का पेमेंट लेने के लिए भी Swift नेटवर्क की आवश्यकता पड़ती थी।
अमेरिका यह पहले भी दूसरे देशों के साथ कर चुका है कि उनका Swift transaction भी बंद कर दिया था ऐसे में यह तो साफ होता है कि अमेरिका के मनमानी के कारण आगे ही किसी भी देश को इस प्रकार की समस्या का सामना करना पड़ सकता है। ऐसे में यह सभी देश भी यही चाहते हैं कि Swift Network के बजाय UPI को स्विफ्ट नेटवर्क ऑप्शन बनाना चाहते हैं, और अमेरिका की मनमानी पर रोक लगा सकते हैं। अमेरिका ऐसा नहीं होने देना चाहता है क्योंकि यदि ऐसा हो गया तब अमेरिका की सत्ता तो जाएगी ही इसके साथ ही उसकी कमाई भी रुक जाएगी जो swift network के द्वारा होती है।
30 से भी अधिक देश है UPI की लाइन में
कई देश UPI को अपना रहे हैं फ्रांस पहले UPI को अपना चुका है वहीं पर वियतनाम, कंबोडिया, थाईलैंड जैसे देशों के साथ ही 30 देशों में इसे अपनाने की प्रक्रिया जारी है। दोस्तों चीन में भी Mastercard and Visa Card बैन है, यहां UnionPay प्रचलित है और यह 180 देशों में काम में लिया जाता है, जो भारत के लिए मुश्किल बन सकता है। लेकिन यहां भारत के लिए सबसे अच्छी बात यह है कि चीन की डाटा चोरी की हरकत पूरी दुनिया जानती है, और वह इसके लिए पूरी दुनिया में भी बदनाम हो गया है, ऐसे में भारत के यूपीआई को आगे बढ़ने का मौका मिल सकता है।
लेकिन हमारी परेशानी सिर्फ अमेरिका है क्योंकि अमेरिका की दादागिरी की आगे यह सभी देश चुप रहते हैं। अमेरिका हमेशा से ही ऐसा करता आया है वह कभी किसी देश को अपने से आगे बढ़ते हुए नहीं देखना चाहता, और यदि कोई कोशिश करता भी है तो वह उसके सामने दीवार बनकर खड़े होने की कोशिश करता है। लेकिन भारत को UPI के लिए कोशिश करनी होगी पूरी दुनिया को समझना होगा कि अमेरिका को यह ताकत उसे स्विफ्ट नेटवर्क और डॉलर ने दिए है । यदि इस पर अमेरिका की मनमानी रुक जाएगी तो उसे मात देना बहुत ही आसान हो जाएगा और स्विफ्ट जैसे नेटवर्क के स्थान पर UPI Technology के network का डंका पूरे दुनिया में बजेगा।
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